दुख मे पलता आया हूँ
दुख
मे पलता आया
हूँ सुख की मुझको चाह
नहीं ,
उसका
किंचित अनुभव करलूँ,
इसकी
भी कुछ
परवाह नहीं ।
संश्रित
सागर की
लहरों पर,
फेंका
लघु पुष्प
तुम्हारा
हूँ
संघर्षो
से तूफानों से टकरा टकरा कर हारा हूँ ।
यह
अगम धार कर पार, कभी क्या तेरे सम्मुख आऊँगा?
आऊँगा
तो उन चरणों मे स्थान प्रभों क्या पाऊँगा ?
दुख
मे पलता आया
हूँ सुख की मुझको चाह नहीं ,