Thursday 23 April 2020

दुख मे पलता आया हूँ


दुख मे पलता आया हूँ

दुख मे पलता आया हूँ सुख की मुझको चाह नहीं ,

उसका किंचित अनुभव करलूँ,
 
इसकी भी कुछ परवाह नहीं । 

संश्रित सागर की लहरों पर,

फेंका लघु पुष्प तुम्हारा हूँ 


संघर्षो से तूफानों से टकरा टकरा कर हारा हूँ ।

यह अगम धार कर पार, कभी क्या तेरे सम्मुख आऊँगा?
 
आऊँगा तो उन चरणों मे स्थान प्रभों क्या पाऊँगा ?

दुख मे पलता आया हूँ सुख की मुझको चाह  नहीं ,


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