ये गजरे तारे वाले
राज कुमार वर्मा
इस सोते संसार बीच,
जग कर सज कर रजनी वाले ,कहाँ बेचने ले जाती हो ,
ये गजरे तारों वाले ?
मोल करेगा कौन !
सो रही हैं उत्सुक आंखे सारी
,मत कुम्हलाने दो,
सुनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी ׀
निर्झर के निर्मल जल में ,
ये गजरे लहरा कर धोना,लहर हहर कर यदि चूमे तो ,
किंचित विचलित मत होना ׀
होने दो प्रतिबिम्ब
विचुम्बित ,
लहरो ही में लहराना,लो मेरे तारों के गजरे,
निर्झर स्वरों में यह गाना ׀
यदि प्रभात तक कोई आकार ,
तुमसे हाय न मोल करे ,तो फूलों पर ओस–रूप में ,
बिखरा देना सब गजरे ׀