Saturday 29 September 2012

ये गजरे तारे वाले--राज कुमार वर्मा


ये गजरे तारे वाले

राज कुमार वर्मा

 

इस सोते संसार बीच,
जग कर सज कर रजनी वाले ,
कहाँ बेचने ले जाती हो ,
ये गजरे तारों वाले ?

मोल करेगा कौन !
सो रही हैं उत्सुक आंखे सारी ,
मत कुम्हलाने दो,
सुनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी ׀

निर्झर के निर्मल जल में ,
ये गजरे लहरा कर धोना,
लहर हहर कर यदि चूमे तो ,
किंचित विचलित मत होना  ׀

होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित ,
लहरो ही में लहराना,
लो मेरे तारों के गजरे,
निर्झर स्वरों में यह गाना ׀

यदि प्रभात तक कोई आकार ,
तुमसे हाय न मोल करे  ,
तो फूलों पर ओसरूप में ,
बिखरा देना सब गजरे ׀ 

1 comment:

  1. वाह वाह वाह लाजवाब रचना।

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