Tuesday 29 October 2013

वर दे वीणावादिनी ---सूर्य कान्त त्रिपाठी “निराला”


वर दे वीणावादिनी


(सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला)

वर दे वीणावादिनी वर दे,


प्रिय स्वतंत्ररव,
अम्रत-मंत्र नव भारत में भर दे |
काट अंध उर के बंधनस्तर,
बहा जननि ज्योतिमर्य निर्झर,
कलुषभेदतम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे |
नव गति,नव लय,
ताल छंद नव,
नवल कंठ नव जलदमंद्र रव ,  
व नभ के नव विहग- वृन्द को
नव पर नव स्वर दे |
वर दे वीणावादिनी वर दे |

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