Tuesday 29 October 2013

भिक्षुक -सूर्य कान्त त्रिपाठी “निराला”



भिक्षुक
(सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला)
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता ,
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टीपाने की ओर बढ़ाये
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता भाग्य विधाता से क्या पाते ?
घूँट आँसुओ के पीकर रह जाते
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए

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