बचपन
सुभद्रा
कुमारी चौहान
बार बार आती है मुझको याद बचपन तेरी,
गया,ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी.
चिंता रहित खेलना खाना,वह फिरना निर्भय स्वछंद,
कैसे भूला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनंद .
ऊँच नीच का ज्ञान नही था,छुआ छूत किसने जानी,
बनी हुई थी वहाँ झोपडी और चीथड़ो में रानी.
किये दूध के कुल्ले मैंने, चूस अंगूठा सुधा पिया,
कोल्कारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया .
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे,
बड़े बड़े मोटी से आंसू जय माला पहनाते थे .
मै रोई माँ काम छोड़ कर आई मुझको उठा लिया ,
झाड –पोछ कर,चूम चूम कर गीले गालो को सुखा दिया.
दादा ने चन्दा दिखलाया नेत्र नीर–युत दमक उठे,
धुली हुई मुस्कान देखकर सबके चेहरे चमक उठे.
वह सुख का साम्राज्य छोडकर मै मतवाली बड़ी हुई,
लुटी हुई ,कुछ ठगी हुई सी दौड़ कर द्वार पर खडी हुई.
लाज भरी आँखे, उमंग मेरे मन में रंगीली थी ,
तान रसीली थी,कानो में चंचल छबीली थी .
दिल में एक चुभन सी भी थी यह दुनिया अलबेली थी,
मन में एक पहेली थी, मै सबके बीच अकेली थी.
मिला खोजती थी जिसको, हे बचपन ठगा दिया तूने,
अरे, जवानी के फंदे में मुझको फंसा दिया तूने.
सब गलिया उसकी भी देखी, उसकी खुशियाँ न्यारी है,
प्यारी, प्रीतम की रंग रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं .
माना मैंने युवा–काल का जीवन खूब निराला है,
आकांछा, पुरुषार्थ,ज्ञान का हृदय मोहने वाला है.
किन्तु यही झंझट है भारी युद्ध झेत्र संसार बना,
चिंता के चक्कर में पड़ कर जीवन भी भार बना.
आजा बचपन ,एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति,
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति.
वह भोली सी मधुर सरलता, वह प्यारा जीवन निष्पाप,
क्या आकर फिर मिटा
सकेगा,तू मेरे जीवन का संताप.
मै बचपन को बुला रही थी,बोल उठी बिटिया मेरी,
नंदन बन सी फुल उठी यह छोटी सी कुटिया मेरी.
‘माँ ओ’ कह कर बुला
रही थी,मिट्टी खा कर आई थी,
कुछ मुह में कुछ
लिए हाथो में मुझे खिलाने आई थी.
पुलक रहे थे अंग–द्रगों में कौतुहल था, छलक रहा,
मुह पर थी अल्हाद लालिमा विजय गर्व था झलक रहा.
मैंने पूछा ‘ यह क्या लाइ बोल उठी वह माँ,काओ ,
हुआ प्रफुल्लित ह्रदय खुशी से मैंने कहा तुम्ही खाओ.
पाया मैंने बचपन फिरसे बचपन बेटी बन आया ,
उसकी मंजुल मूर्ती देख कर मुझ में नव जीवन आया .
मै भी उसके साथ खेलती खाती हूँ तुतलाती हूँ,
मिल कर उसके साथ स्वयं मै भी बच्ची बन जाती हूँ .
जिसे खोजती थी बरसों से अब आकर उसको पाया ,
भाग गया था मुझे छोड़ कर वह बचपन फिर से आया.
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