Sunday 8 April 2012

उसे भी देख साथी --रामधारी सिंह ‘दिनकर’


उसे भी देख साथी

रामधारी सिंह दिनकर

उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी.

सियाही देखता है,देखता है तू अँधेरे को,
किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को,
उसे भेए देख ,जो तेरे बाहरी तम को बहा सकती,
दबी तेरे लहू मे रौशनी की धार है साथी.

पडी  थी नीव तेरी चाँद सूरज के उजाले पर,
तपस्या पर,लहू पर,आग पर ,तलवार-भालों पर,
डरे तू ना उम्मीदों से,कभी यह हो नहीं सकता,
कि तुझ में ज्योति का अक्षय भरा भंडार है साथी .

बवण्डर चीखता लौटा, फिरा तूफ़ान जता है ,
डराने के लिये तुझको नया  भूडोल आता है,
नया मैदान है राही, गरजना है नये बल से ,
उठा,इस बार वह जो आख़िरी हुँकार है साथी .

विनय की रागिनी में,बीन के ये तार बजते हैं,
रुदन बजता,सजग हो ,छोभ हाहाकार बजते हैं ,
बजा इस बार दीपक राग कोई आख़िरी बार सुर में,
छिपा इस बीन में ही आग वाला तार है साथी.

गरजते शेर आये ,सामने फिर भेडिये आये,
नखों को तेज,दातों को बहुत तीखा किये आये,
मगर परवाह क्या?हो जा खडा तू तानकर उसको,
छिपी जो हड्डियों में आग सी तलवार है साथी.

शिखर पर तू, न तेरी राह बाकी दाहिने बाएँ,
खड़ी आगे दरी यह मौत सी विकराल मॅुह बाये,
कदम पीछे हटाया  तो अभी ईमान जाता है,
उछल जा ,कूद जा, पल मे दरी यह पार है साथी.

न रुकना है तुझे, झन‌ड़ा उड़ा केवल पहाडो पर,
विजय पानी है तुझको चाँद ,सूरज पर, सितारों पर,
बधू रहती जहाँ नर वीर की तलवार वालों की ,
जमीं वह इस ज़रा से  आसमां के पार है  साथी.

भुजाओं पर,मही का भार फूलों सा उठाये जा,
कंपाये जा गगन को ,इन्दु का आसन हिलाये  जा ,
जहाँ में एक ही रौशनी ,वह नाम की तेरे,
जमी को एक तेरी आग का आधार है साथी.


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