Sunday 8 April 2012

बालिका से बधू --रामधारी सिंह ‘दिनकर’


बालिका से बधू

रामधारी सिंह दिनकर

माथे में सेंदुर पर छोटी दो बिंदी चमचम सी,
पपनी पर आँसू की बूंदें मोती सी,शबनम सी,
लदी हुई कलियों में मादक टहनी एक नरम सी,
यौवन की विनती-सी,भोली गुमसुम खड़ी शरम सी.

पीला चीर, कोर में जिसकी चकमक गोटा जाली,
चली पिया के गॅाव,उमर के सोलह फूलोंवाली,
पी चुपके आनन्द,उदासी भरे सजल चितवन में,
आँसू में भीगी माया चुपचाप खड़ी आँगन में .

आँखों में दे आँख हेरती है सब सखियां,
मुस्की आ जाती मुख पर,हँस देती रोती अंखियाँ,
पर समेट लेती शरमाकर बिखरी सी मुस्कान ,
मिट्टी उकसाने लगती है अपराधिनि समान .

भींग रहा मीठी उमंग से दिल का कोना कोना,
भीतर भीतर हँसी देख लो ,बाहर बाहर रोना ,
तू वह जो झुरमुट् पर आयी हँसती कनक कली सी
तू वह, जो फूटी शराब की निर्झरणी पतली सी.

तू वह,रचकर जिसे प्रकृति ने अपना किया सिंगार ,
तू वह जो घूसर में आयी सबुज रंग की धार,
माँ की ढीठ दुलार,पिता की ओ लजवंती भोली ,
ले जायेगी हिय की मणि को पिया की डोली .




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