जौहर
श्याम नारायण पाण्डेय
थाल सजा कर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले,
कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले .
इधर प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,
इधर कहाँ है तीर्थ तुम्हारा कहाँ चले तुम सन्यासी .
चले झूमते मस्ती से, क्या तुम अपना पथ आये भूल,
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा,कहाँ चढेगा माला फूल .
मुझे न जाना गंगा सागर,मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थ राज चित्तौड देखने को, मेरी आँखे प्यासी .
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर वैरी की बोली,
निकल पडी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली .
जहाँ आन पर माँ बहनों ने जल जला पवन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर में जय माँ की जय जय बोली.
सुंदरियों ने जहाँ देश हित, जौहर व्रत करना सीखा,
स्वंतत्रता के लिए जहाँ पर, बच्चो ने भी मरना सीखा.
वहीँ जा रहा पूजा करने, लेने सतियो की पग घूल ,
वही हमारा दीप जलेगा, वहीं चढेगा माला फूल .
जहाँ पदमिनी जौहर व्रत करती, चढ़ी चिता की ज्बाला
पर,
क्षण भर वही समाधी लगी बैठ इसी मृग छाला पर.
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