Thursday 8 March 2012

सखि वे मुझसे कह कर जाते -मैथलीशरण गुप्त


सखि वे मुझसे कह कर जाते
मैथलीशरण गुप्त

सखि, वे मुझसे कह कर जाते,
कह,दो क्या मुझको वे अपनी पथ बाधा पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना,फिर भी क्या पूरा पहचाना
मैंने मुख्य उसी को माना, जो वे मन में लाते.
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

स्वयं सुसज्जित करके झण में,
प्रियतम को,प्राणों के पण में,
हमी भेज देती हैं रण में,  
झात्र धर्म के नाते,
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

हुआ न यह भी भाग्य अभागा ,
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपना था त्यागा,
रहे स्मरण ही आते ,
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सहस हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

जाएँ ,सिद्धि पावे वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुःख से,
आज अधिक वे भाते !
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

गये, लौट भी वे आवेंगे ,
कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे ,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे ,
पर क्या गाते गाते,
सखि, वे मुझसे कह कर जाते.

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