फूल और कांटे
मेंह उन पर है बरसता एक सा,एक सी उनपर हवाएँ हैं
बही |
पर सदा ही दीखता है हमें,ढंग उनके एक से होते
नहीँ | |
छेद कर काँटा किसी की उंगलियाँ,फाड़ देता है किसे
का वर वसन |
और प्यारी तितलियोँ के पर क़तर,भौर का है भेद
देता श्याम तन | |
फूल ले कर तितलियोँ को गोद में,भौर को अपना
अनूठा रस पिला |
निज सुगंधी और निराले रंग से,है सदा देता कली
दिल की खिला | |
है खटकता एक सबकी आँख में,दूसरा है सोहता सुर
शीश पर |
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,जो किसी में हो बडप्पन
की कसर | |
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