Saturday 10 March 2012

फूल और कांटे--अयोध्या सिंह ‘ हरिऔध’


फूल और कांटे

 अयोध्या सिंह हरिऔध

 हैं जन्म लेते जगत में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता |
रात में उन पर चमकता चादं भी,एक ही सी चाँदनी डालता | |

मेंह उन पर है बरसता एक सा,एक सी उनपर हवाएँ हैं बही  |
पर सदा ही दीखता है हमें,ढंग उनके एक से होते नहीँ  | |

छेद कर काँटा किसी की उंगलियाँ,फाड़ देता है किसे का वर वसन |
और प्यारी तितलियोँ के पर क़तर,भौर का है भेद देता श्याम  तन  | |

फूल ले कर तितलियोँ को गोद में,भौर को अपना अनूठा रस पिला |
निज सुगंधी और निराले रंग से,है सदा देता कली दिल की खिला | |

है खटकता एक सबकी आँख में,दूसरा है सोहता सुर शीश पर |
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,जो किसी में हो बडप्पन की कसर | |


No comments:

Post a Comment